यहाँ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (The Prevention of Corruption Act, 1988) के उद्देश्य और प्रमुख प्रावधानों को सरल और स्पष्ट हिंदी में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है, जो UPSC, PSC, न्यायिक सेवा या अकादमिक अध्ययन के लिए उपयोगी है:
✅ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के उद्देश्य (Objectives):
- लोक सेवकों में ईमानदारी और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- लोक सेवकों द्वारा रिश्वत लेने और देने को अपराध घोषित करना।
- सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण स्थापित करना।
- भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की निष्पक्ष और प्रभावी जांच की व्यवस्था करना।
- लोक सेवकों पर निगरानी और उनके कार्यों की जवाबदेही तय करना।
- रिश्वत लेने और देने वाले दोनों पक्षों को दंडित करना।
✅ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions):
. 1. लोक सेवक की परिभाषा (Section 2)
– इसमें सरकारी कर्मचारी, सार्वजनिक उपक्रम के अधिकारी, न्यायाधीश, सांसद/विधायक आदि को "लोक सेवक" माना गया है।
. 2. रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध (Section 7 और 8)
– यदि कोई लोक सेवक रिश्वत (घूस) मांगता है या स्वीकार करता है तो यह अपराध है।
– साथ ही, रिश्वत देने वाला व्यक्ति भी दोषी माना जाएगा।
. 3. पद के दुरुपयोग का अपराध (Section 13)
– यदि कोई लोक सेवक जानबूझकर अपने पद का दुरुपयोग करता है और किसी को अनुचित लाभ पहुँचाता है या हानि करता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है।
. 4. जाल बिछाना और फँसाना (Trap Cases - Section 17 & 22)
– यह अधिनियम CBI जैसी एजेंसियों को रिश्वत लेते समय व्यक्ति को रंगे हाथ पकड़ने के लिए जाल बिछाने की अनुमति देता है।
. 5. दंड और सजा (Punishment - Section 7 to 13)
– न्यूनतम सजा: 3 वर्ष,
– अधिकतम सजा: 7 वर्ष तक की कैद + जुर्माना।
– गंभीर मामलों में यह सजा 10 वर्ष तक भी हो सकती है।
. 6. लोक सेवक के खिलाफ अभियोजन की पूर्व अनुमति (Section 19)
– किसी भी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार या संबंधित प्राधिकारी की पूर्व अनुमति (Sanction) जरूरी है।
. 7. संपत्ति का जब्तीकरण (Forfeiture of Property)
– यदि लोक सेवक के पास आय से अधिक संपत्ति पाई जाती है, तो उसे जब्त किया जा सकता है।
✅ संशोधन 2018 के तहत प्रमुख बदलाव:
- रिश्वत देने वालों को भी अपराधी माना गया।
- "कंपनियों द्वारा रिश्वत देना" भी शामिल किया गया।
- लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य की गई।
- भ्रष्टाचार के मामलों में समयबद्ध सुनवाई (2 वर्ष के भीतर निपटारा) का प्रावधान।
✅ निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 एक सशक्त कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य है –
"सरकारी तंत्र में पारदर्शिता लाना, जनता के विश्वास को बहाल रखना और भ्रष्टाचार को सख्ती से नियंत्रित करना।"