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भारत में नशे की लत को अपराध घोषित करने के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

Sunil Cyber Cafe 0

 यह रहा "भारत में नशे की लत को अपराध घोषित करने के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव" पर एक विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक उत्तर। यह विषय न्यायिक परीक्षाओं, UPSC, विश्वविद्यालय परीक्षाओं, या निबंध लेखन के लिए अत्यंत उपयुक्त है।


✅ भूमिका (Introduction):

भारत में मादक पदार्थों की लत (Drug Addiction) को एक अपराध (Criminal Offence) के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से NDPS Act, 1985 के तहत। इसका उद्देश्य भले ही नशे को नियंत्रित करना हो, परंतु नशे के आदी व्यक्ति को अपराधी मानना एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक और नैतिक बहस का विषय बन गया है।
इस नीति के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव बहुआयामी हैं।


✅ 1. नशे की लत को अपराध घोषित करना – कानूनी परिप्रेक्ष्य:

  • NDPS Act, 1985 के तहत ड्रग्स का सेवन, कब्जा, और लेन-देन सभी अपराध की श्रेणी में आते हैं।

  • सेवनकर्ता (User) और तस्कर (Trafficker) में कोई स्पष्ट अंतर नहीं किया गया।

  • जमानत कठिन, लंबी सज़ाएँ, और पुनर्वास की व्यवस्था सीमित।


✅ 2. आर्थिक प्रभाव (Economic Impacts):

.1. न्यायिक प्रणाली पर भार

  • लाखों मुकदमे NDPS के तहत पेंडिंग हैं, जिनमें कई छोटे उपयोगकर्ता हैं।

  • इससे न्यायपालिका पर अपराधियों और रोगियों में फर्क किए बिना बोझ बढ़ता है।

.2. कारागारों पर खर्च

  • जेलों में ड्रग एडिक्ट्स की संख्या अधिक है, जिनके इलाज और निगरानी पर खर्च होता है।

  • इन व्यक्तियों को उत्पादक नागरिक बनाने की बजाय, जेल में रखना आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह है।

.3. मानव संसाधन की क्षति

  • युवा वर्ग, जो नशे की लत में हैं, यदि जेल में चला जाता है तो उसका शैक्षणिक, आर्थिक और कौशल विकास रुक जाता है।

  • इससे रोज़गार और GDP पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

.4. स्वास्थ्य बजट की अनुपस्थिति

  • जब नशे की लत को अपराध माना जाता है, तो सरकार स्वास्थ्य के तहत पुनर्वास का बजट नहीं बनाती, जबकि यह ज़रूरी है।


✅ 3. सामाजिक प्रभाव (Social Impacts):

.1. कलंक (Stigma) और बहिष्करण

  • नशे के रोगी को अपराधी घोषित करने से वह समाज से कट जाता है।

  • रोज़गार, शिक्षा और विवाह जैसे सामाजिक अवसर बाधित होते हैं।

.2. पुनर्वास की अनदेखी

  • अपराध के तौर पर देखे जाने से सरकारें और परिवार इलाज और काउंसलिंग की बजाय दंड को प्राथमिकता देते हैं।

  • इससे नशा-मुक्ति की दर कम होती है

.3. पारिवारिक विघटन और घरेलू हिंसा

  • जेल जाने वाले युवा परिवारों से कट जाते हैं, जिससे सम्बंध टूटते हैं और घरेलू समस्याएं बढ़ती हैं

.4. वर्गीय अन्याय

  • अमीर वर्ग के नशेड़ी अक्सर छूट जाते हैं जबकि गरीब, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग disproportionately जेल जाते हैं।

  • इससे सामाजिक न्याय और समानता का हनन होता है।


✅ तुलनात्मक उदाहरण (International Comparisons):

देश नीति परिणाम
पुर्तगाल नशे की लत को अपराध नहीं, स्वास्थ्य समस्या माना अपराध दर घटी, पुनर्वास बढ़ा
नीदरलैंड सीमित मात्रा में उपयोग की अनुमति ड्रग्स पर सामाजिक नियंत्रण
भारत सेवनकर्ता भी अपराधी जेल भराव, सामाजिक बहिष्कार

✅ समाधान एवं सुझाव:

.1. नशा करने वालों को रोगी माना जाए, अपराधी नहीं

– कानून में सेवनकर्ता और तस्कर के बीच अंतर होना चाहिए।

.2. डि-क्रिमिनलाइजेशन

– जैसे पुर्तगाल ने किया, वैसे ही भारत में भी छोटे मात्रा के ड्रग उपभोग को स्वास्थ्य सेवा के अंतर्गत लाया जाए।

.3. पुनर्वास केंद्रों और मानसिक स्वास्थ्य सहायता का विस्तार

– राज्य और केंद्र सरकार द्वारा आसानी से उपलब्ध पुनर्वास सेवाएँ दी जाएँ।

.4. समाज में जागरूकता

– नशा करने वालों को “अपराधी” की बजाय “उपचार योग्य रोगी” के रूप में देखने की मानसिकता बनाई जाए।


✅ निष्कर्ष (Conclusion):

भारत में नशे की लत को अपराध घोषित करने की नीति ने जहां ड्रग तस्करी को नियंत्रित करने का प्रयास किया, वहीं इसके अर्थशास्त्रीय व सामाजिक प्रभाव कई बार मानवाधिकार और स्वास्थ्य नीति के खिलाफ रहे हैं।
अब समय आ गया है कि हम सजा की बजाय सुधार, बहिष्कार की बजाय पुनर्वास, और कलंक की बजाय करुणा को अपनाएं।



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