संविधान : मौलिक विधि और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत का संविधान केवल एक नियमावली या कानून नहीं है, बल्कि यह देश की मौलिक विधि (Basic Law) है। यह वह सर्वोच्च नियम है, जिसके आधार पर सभी कानून बनाए जाते हैं और सभी सरकारी कार्य संचालित होते हैं। इस लेख में हम संविधान की मौलिक विधि के रूप में महत्ता और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
संविधान क्या है?
संविधान का शाब्दिक अर्थ है – “संस्था का विधान” या “सरकार चलाने का मूल नियम”। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जो देश के लोगों और सरकार के बीच संबंध स्थापित करता है। भारत का संविधान सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, सरकार की शक्तियों का विभाजन करता है और देश के संचालन के नियम निर्धारित करता है।
संविधान को मौलिक विधि क्यों कहा जाता है?
🔹 सर्वोच्च नियम: संविधान सभी कानूनों से ऊपर है। कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई संविधान के खिलाफ नहीं हो सकती।
🔹 सभी कानूनों की आधारशिला: संविधान के अनुसार ही सभी कानून बनते हैं और बदलते हैं।
🔹 सरकार की शक्तियों का निर्धारण: संविधान में सरकार की शक्तियों का बंटवारा स्पष्ट रूप से लिखा होता है, जिससे सत्ता का दुरुपयोग न हो।
🔹 मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: संविधान ही नागरिकों के अधिकारों की गारंटी देता है।
🔹 परिवर्तन की जटिल प्रक्रिया: संविधान को संशोधित करना सामान्य कानूनों से अधिक कठिन होता है, जो इसे स्थायित्व प्रदान करता है।
संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत के संविधान का निर्माण कई ऐतिहासिक घटनाओं, विचारों और कानूनों के प्रभाव से हुआ। इसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. प्राचीन और मध्यकालीन भारत में शासन प्रणाली
🔹 भारत में प्राचीन काल से ही विभिन्न साम्राज्यों और राज्यों में शासन की व्यवस्था थी, जैसे मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य आदि। वहाँ राजा और उनकी प्रजा के बीच नियम व कानून होते थे।
🔹 धर्मशास्त्रों और राजधर्म ग्रंथों में शासन के सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है, जो बाद में संवैधानिक विचारों के आधार बने।
2. मुगल और ब्रिटिश शासनकाल
🔹 मुगल काल में शासक के अधिकार और न्याय व्यवस्था का विकास हुआ, जिससे शासन की संरचना को समझने में मदद मिली।
🔹 ब्रिटिश शासनकाल ने भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को गहरा प्रभाव दिया। ब्रिटिश शासन ने भारत में विधायी, कार्यकारी और न्यायपालिका के अलग-अलग अंग स्थापित किए।
3. ब्रिटिश भारत में संवैधानिक विकास
🔹 1858 का भारत अधिनियम: ब्रिटिश सरकार ने भारत का प्रशासन अपने हाथ में लिया।
🔹 इंडियन काउंसिल एक्ट 1861, 1892, 1909 (मोरली-मिंटो सुधार): भारतीयों को धीरे-धीरे प्रशासन में भागीदारी दी गई।
🔹 मॉन्टैग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919): भारत में द्वि-खण्डित सरकार का प्रारंभ।
🔹 गोवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935: भारत के लिए पहला विस्तृत संविधानात्मक फ्रेमवर्क। यह केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन करता था।
4. स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण की मांग
🔹 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता संगठनों ने भारत को स्वशासन (डोमिनियन स्टेटस) देने की मांग की।
🔹 1928 में सर्वभारतीय संविधान समिति ने “प्रीम्बल” और नागरिक अधिकारों की मांग की।
🔹 1930 का भारत अधिनियम और 1931 का भारत संविधान प्रस्ताव ने संविधान बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।
🔹 कांग्रेस की राष्ट्रीय स्वयंसेवक समिति ने भी एक रूपरेखा प्रस्तुत की।
5. संविधान सभा का गठन और संविधान निर्माण
🔹 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ, जिसमें विभिन्न समुदायों और प्रांतों के प्रतिनिधि थे।
🔹 डॉ. भीमराव अम्बेडकर संविधान समिति के अध्यक्ष थे, जिन्होंने संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया।
🔹 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया।
संविधान के प्रमुख सिद्धांत
🔹 लोकतंत्र (Democracy): सत्ता का स्रोत जनता है।
🔹 संघीय व्यवस्था (Federalism): केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा।
🔹 न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence): संविधान की रक्षा के लिए न्यायपालिका स्वतंत्र है।
🔹 मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): प्रत्येक नागरिक के बुनियादी अधिकारों की गारंटी।
🔹 कानून का शासन (Rule of Law): सभी के लिए कानून समान।
निष्कर्ष
भारत का संविधान केवल एक कागज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि वह देश का मौलिक विधि है, जो हमारे लोकतंत्र का आधार है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हजारों वर्षों के सामाजिक-राजनीतिक विकास, ब्रिटिश शासन की संवैधानिक प्रथाओं, स्वतंत्रता संग्राम की मांगों और अंततः संविधान सभा के अथक प्रयासों का परिणाम है। संविधान ने भारत को एक मजबूत, न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाया है।