प्रतिफल और इसके अपवाद
परिचय
किसी भी अनुबंध (Contract) की वैधता के लिए प्रतिफल (Consideration) एक आवश्यक तत्व होता है। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के अनुसार, जब एक पक्ष किसी अन्य पक्ष के अनुरोध पर कुछ करता है या करने का वचन देता है, तो इसे प्रतिफल कहा जाता है। सरल शब्दों में, यह वह मूल्य है जो अनुबंध को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाता है।
प्रतिफल की आवश्यकताएँ
- यह किसी के अनुरोध पर होना चाहिए - प्रतिफल केवल तब मान्य होता है जब यह अनुबंध करने वाले पक्षों में से किसी एक के अनुरोध पर दिया गया हो।
- यह अतीत, वर्तमान या भविष्य का हो सकता है - प्रतिफल भूतकालीन, वर्तमान या भविष्य में दिया जाने वाला हो सकता है।
- यह कानूनी होना चाहिए - प्रतिफल अवैध या अनुचित नहीं होना चाहिए।
- यह वास्तविक होना चाहिए - यह नकली या दिखावटी नहीं होना चाहिए।
- यह पर्याप्त हो सकता है, परंतु उचित होना आवश्यक नहीं - भारतीय कानून में प्रतिफल का मूल्य तय करना आवश्यक नहीं होता, लेकिन यह अनुचित नहीं होना चाहिए।
प्रतिफल के अपवाद भारतीय अनुबंध अधिनियम में कुछ विशेष परिस्थितियों में बिना प्रतिफल के भी अनुबंध को वैध माना गया है। ये निम्नलिखित हैं:
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प्रेम और स्नेह से किया गया वादा (Section 25(1))
यदि कोई व्यक्ति प्राकृतिक प्रेम और स्नेह के कारण अपने निकट संबंधी को कुछ देने या करने का वचन देता है और वह वचन लिखित तथा पंजीकृत होता है, तो वह बिना प्रतिफल के भी वैध माना जाएगा। उदाहरण: यदि कोई पिता अपने पुत्र को एक संपत्ति देने का लिखित और पंजीकृत वचन देता है, तो यह अनुबंध वैध होगा। -
अतीत में किया गया कार्य (Section 25(2))
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य के लिए स्वेच्छा से कुछ करता है और बाद में दूसरा व्यक्ति उसे कोई प्रतिफल देने का वचन देता है, तो यह अनुबंध मान्य होगा। उदाहरण: कोई व्यक्ति दुर्घटना में फंसे व्यक्ति की मदद करता है और बाद में वह व्यक्ति उसे कुछ इनाम देने का वादा करता है, तो यह अनुबंध वैध होगा। -
कानूनी दायित्व (Section 25(3))
यदि कोई व्यक्ति कानूनन किसी दायित्व से बाध्य है और वह किसी अन्य से बिना प्रतिफल के भी अनुबंध करता है, तो यह वैध होगा। उदाहरण: किसी कर्जदार द्वारा अपने लेनदार को लिखित रूप में कर्ज चुकाने का वचन देना। -
दान (Gift) के मामले में
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के कुछ उपहार (Gift) देता है और वह इसे स्वीकार कर लेता है, तो यह अनुबंध बिना प्रतिफल के भी वैध होगा। उदाहरण: किसी व्यक्ति द्वारा अपने मित्र को स्वेच्छा से कार उपहार में देना।
निष्कर्ष प्रतिफल किसी अनुबंध को वैध बनाने का एक महत्वपूर्ण तत्व है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे बिना प्रतिफल के भी मान्यता दी गई है। भारतीय अनुबंध अधिनियम द्वारा दिए गए अपवादों के आधार पर, यह स्पष्ट होता है कि सभी अनुबंधों के लिए प्रतिफल आवश्यक नहीं होता, लेकिन अधिकांश मामलों में यह अनुबंध को कानूनी वैधता प्रदान करता है।