भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 के तहत धारा 316, 138 और 309 की पूरी जानकारी
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 1 जुलाई 2024 से लागू हो चुकी है। यह भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 का नया संस्करण है, जिसमें कई बदलाव और संशोधन किए गए हैं।
यहाँ पर धारा 316, 138 और 309 के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है:
🔷 धारा 316 – गर्भस्थ शिशु की हत्या (Culpable Homicide of an Unborn Child)
📌 क्या कहती है यह धारा?
यदि कोई व्यक्ति किसी गर्भवती महिला पर हमला करता है या उसे गंभीर चोट पहुँचाता है, जिससे उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की मृत्यु हो जाती है, तो उसे गर्भस्थ शिशु की हत्या का दोषी माना जाएगा।
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु:
✔ यह धारा तब लागू होगी जब गर्भवती महिला पर किया गया हमला जानबूझकर किया गया हो और इस कारण बच्चे की मृत्यु हो जाए।
✔ यह धारा हत्या (Murder) और गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide) से अलग होती है, क्योंकि इसमें मरने वाला व्यक्ति अभी जन्म नहीं लिया होता।
✔ यदि महिला की सहमति से गर्भपात कराया गया है (जैसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत), तो यह अपराध नहीं होगा।
🔹 सजा और दंड
🔸 10 साल तक का कारावास
🔸 जुर्माना भी लगाया जा सकता है
🔹 उदाहरण:
➡ यदि कोई व्यक्ति गुस्से में किसी गर्भवती महिला को लात मारता है और इसके कारण उसके गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो जाती है, तो वह धारा 316 के तहत दोषी होगा।
🔷 धारा 138 – चेक बाउंस का मामला (Cheque Bounce Case)
📌 क्या कहती है यह धारा?
अगर कोई व्यक्ति किसी और को चेक जारी करता है, लेकिन वह चेक बैंक में अपर्याप्त धनराशि (Insufficient Funds) के कारण बाउंस हो जाता है, तो यह अपराध माना जाता है।
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु:
✔ यह धारा पहले परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) में थी, जिसे अब BNS 2023 में शामिल किया गया है।
✔ इसमें उन सभी चेक बाउंस मामलों को शामिल किया जाता है, जहाँ बैंक द्वारा "Funds Insufficient" या "Account Closed" जैसी वजहों से भुगतान नहीं होता।
🔹 सजा और दंड
🔸 2 साल तक की कैद
🔸 चेक की राशि का दोगुना तक जुर्माना
🔸 अदालत आरोपी को भुगतान करने का आदेश दे सकती है
🔹 कानूनी प्रक्रिया:
1️⃣ चेक बाउंस होने पर, पीड़ित को सबसे पहले चेक जारी करने वाले को कानूनी नोटिस भेजना होगा।
2️⃣ नोटिस भेजने के 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, तो 30 दिनों के अंदर कोर्ट में मामला दायर किया जा सकता है।
3️⃣ कोर्ट इस मामले की सुनवाई करता है और यदि दोष साबित होता है, तो सजा या मुआवजा आदेश दिया जाता है।
🔹 उदाहरण:
➡ मान लीजिए, किसी व्यापारी ने अपने सप्लायर को 5 लाख रुपये का चेक दिया, लेकिन बैंक ने "अपर्याप्त धन" (Insufficient Funds) कहकर उसे वापस कर दिया। अब सप्लायर धारा 138 के तहत कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
🔷 धारा 309 – आत्महत्या का प्रयास (Attempt to Commit Suicide)
📌 क्या कहती है यह धारा?
यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है और बच जाता है, तो उसे सजा दी जा सकती है।
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु:
✔ पहले यह IPC की धारा 309 थी, जिसे अब BNS 2023 में शामिल किया गया है।
✔ यह धारा आत्महत्या करने के प्रयास को अपराध मानती है।
✔ हालांकि, मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के मामले में इस धारा का सख्ती से उपयोग नहीं किया जाता।
🔹 सजा और दंड
🔸 1 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों
🔹 आत्महत्या रोकथाम अधिनियम, 2017 का प्रभाव:
✔ मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति यदि आत्महत्या का प्रयास करता है, तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा।
✔ सरकार और समाज को ऐसे व्यक्ति का इलाज और काउंसलिंग करनी होगी।
🔹 उदाहरण:
➡ यदि कोई छात्र परीक्षा में फेल होने के बाद आत्महत्या करने की कोशिश करता है और बच जाता है, तो वह धारा 309 के तहत दोषी हो सकता है।
➡ लेकिन अगर डॉक्टर यह साबित कर देते हैं कि वह मानसिक तनाव में था, तो उसे इलाज दिया जाएगा, न कि सजा।
🔷 निष्कर्ष और महत्वपूर्ण बातें
📌 धारा 316: गर्भस्थ शिशु की हत्या करने पर 10 साल तक की सजा।
📌 धारा 138: चेक बाउंस होने पर 2 साल तक की सजा या दोगुना जुर्माना।
📌 धारा 309: आत्महत्या के प्रयास पर 1 साल तक की सजा, लेकिन मानसिक रोगियों को राहत मिल सकती है।
✅ अगर आपको इन धाराओं से जुड़ी कोई कानूनी सलाह चाहिए, तो किसी वकील से संपर्क करें। 🚔⚖
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